कि तीसेक बरस की एक नौकरीपेशा लड़की है और इस महानगर में अकेली रहती है।
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महसूस होने लगी, कुछ समय तक तो नौकरीपेशा लड़की को दहेज की मुहलत मिल जाया करती थी
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क्या करें-अनुरिक्ता, जो कि तीसेक बरस की एक नौकरीपेशा लड़की है और इस महानगर में अकेली रहती है।
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नोवा ने सोचा ऐसी शर्तें तो आजकल हर नौकरीपेशा लड़की रखती है और फिर ये तो इतनी बड़ी कंपनी की मालकिन है।
5.
गैर-शादीशुदा नौकरीपेशा लड़की अकेली रहे तो पड़ोस के दुबे जी, तिवारी जी से लेकर अवस् थी, चौबे, बनिया सब सेवा में पलक-पांवड़े बिछाए रहते हैं।
6.
अब तो सभी को नौकरीपेशा लड़कियों की ज़रूरत महसूस होने लगी, कुछ समय तक तो नौकरीपेशा लड़की को दहेज की मुहलत मिल जाया करती थी पर वे दिन भी जल्दी ही विदा हो गए।
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माने नौकरीपेशा लड़की बिना नौकरी के जीवन जी नहीं सकती थी, और नौकरी की जगहों पर सब कहीं उसे चिरकुट ही चिरकुट नज़र आते जिनके बारे में उसे जानने की कोई ज़रूरत नहीं थी क्योंकि वह तो दरवाज़े से दाखिल होते ही जान गयी थी कि ये चिरकुट हैं और चिरकुटों को इंडल्ज करना उसका नेचर था नहीं.
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माने नौकरीपेशा लड़की बिना नौकरी के जीवन जी नहीं सकती थी, और नौकरी की जगहों पर सब कहीं उसे चिरकुट ही चिरकुट नज़र आते जिनके बारे में उसे जानने की कोई ज़रूरत नहीं थी क् योंकि वह तो दरवाज़े से दाखिल होते ही जान गयी थी कि ये चिरकुट हैं और चिरकुटों को इंडल् ज करना उसका नेचर था नहीं. ऐसा लड़की साफ़-साफ़ शब् दों में जानती ही नहीं थी, साफ़-साफ़ शब् दों में ऐलान भी करती थी.